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भटकती आत्मा भाग - 30



भटकती आत्मा भाग –30

हां हां मनकू माँझी ने स्वयँ को छुपाने की कोशिश ही किया था ! उसने लगभग  दौड़ कर आती हुई मैगनोलिया को देख लिया था। मन में आशंका उठी थी,परन्तु पहले आश्चर्य हुआ था कि मैगनोलिया यहां कैसे आ पहुंची ? मैगनोलिया के कुछ निकट आने पर मनकू माँझी ने मैगनोलिया को स्पष्ट रूप से देख लिया था | उसको प्रसन्नता हुई थी,परन्तु यह क्या ? उसके पीछे तो मिस्टर जॉनसन तथा कई अन्य अंग्रेज भागते हुए आ रहे थे | मनकू माँझी घबड़ा गया,उसने सोचा यह लोग मुझे मृत समझ चुके हैं,अब मुझे पुनः यहां देख कर कहीं फिर षडयंत्र करके मारने की कोशिश न करें। इसलिए वह भाग खड़ा हुआ। परन्तु यह क्या !मैगनोलिया की दृष्टि में तो वह आ ही गया |
चट्टान की ओट से खड़ा-खड़ा फटी-फटी निगाहों से बेहोश मैगनोलिया को देख रहा था | ह्रदय सीने के बाहर निकलना चाहता था। दिल में उठती हुई टीस ने उसे बैठ जाने पर मजबूर कर दिया। उसने संयम से काम लिया और बैठ कर आगे की कार्यवाही देखने लगा। 
शब्बो से अपने मन की बात बता, xz पर वह हल्का पन महसूस कर रहा था,और वह शब्बो को वहीं छोड़ दूसरे चट्टान पर उठ कर चला गया था,जहाँ पर धन्नो पहले से बैठी थी और धन्नो का भाई शांत और मनोरम वातावरण में मस्त होकर बीन बजा रहा था।  मनकू माँझी ने भी बंसी की मधुर तान छेड़ दी। चट्टान पर बैठी हुई धन्नो सहसा उठकर खड़ी हो गई,और दूर गिरते हुए झरने की दिशा में उसकी दृष्टि चली गई | फिर उसने चिल्लाकर कहा था -  
    "देखो शब्बो दूर वहां घाटी में कुछ लोग बैठे हैं, शायद विदेशी हैं | कुछ तो जल में उतर कर नहा रहे हैं"|
  उसकी बातों को सुनकर मनकू माँझी भी अपनी उत्कंठा दबा न सका था | वह उस चट्टान पर खड़ा-खड़ा दूर अपनी निगाहें फेंकने लगा | उसकी नजरों की परिधि में कुछ विदेशी आए, फिर एक युवती भी दृष्टिगोचर हुई | वह पुनः बैठ गया | बीन की मधुर आवाज वातावरण में शहद बोल रही थी,मनकू माझी भी बंसी बजाने लगा | परंतु उसका बंसी बजाना ही घातक हो चला | मैगनोलिया तो उसके उस तान से सुपरिचित थी l शायद यही आवाज उसे खींच लाया यहां पर l
  वह बेहोश पड़ी थी मिस्टर जॉनसन आश्चर्यचकित सा खड़ा रह गया था,फिर अन्य युवक भी वहां पहुंच गए थे | कलेक्टर साहब घबड़ा गये l उनका प्राथमिक चिकित्सा का बॉक्स तो घाटी  में ही रह गया था l एक व्यक्ति से वह बॉक्स लाने को कहा उन्होंने l धन्नो और शब्बो उनकी दयनीय दशा पर गौर कर रही थीं l अचानक धन्नो का भाई बोला -
   "मैं इसकी बेहोशी दूर करता हूं"-  यह कह कर वह कुछ दूर जंगल में चला गया, फिर एक पौधा उखाड़ लाया | उसने इशारे से कलेक्टर साहब को उस पौधे का रस मैगनोलिया के मुंह में निचोड़ने को कहा l
  प्राथमिक चिकित्सा बॉक्स अभी तक नहीं आया था,वे परेशान थे l अपनी परेशानी में उसके इशारे को वे समझ नहीं पाए l उसकी भाषा भी तो नहीं जानते थे l वह युवक आगे बढ़ा और पत्तियों का रस निचोड़ कर मैगनोलिया के मुंह में डाल दिया l सब लोग आश्चर्यचकित से खड़े एक दूसरे को देखते ही रह गए।
कलेक्टर साहब चिंतित हो गए थे। वह मैगनोलिया के निकट बैठ कर उसका मस्तक सहलाने लगे। कुछ देर के बाद मैगनोलिया ने आंखें खोली। उसने इधर-उधर खाली आंखों से देखा फिर आवाज उभरी -  "वह ... वह.... चला.... गया..... पापा ...."|
कलेक्टर साहब कुछ भी नहीं समझ पाए, फिर से मैगनोलिया की आंखें बंद हो गईं | चिंतित मुद्रा में उन्होंने बेटी को कंधों पर उठा लिया,फिर चल पड़े उधर जिधर गाड़ी खड़ी थी। पिकनिक का सब मजा किरकिरा हो गया था। कहां तो कलेक्टर साहब मैगनोलिया को मनोरंजन हेतु यहां  लाए थे और कहां यह अप्रत्याशित आघात ही मैगनोलिया को मिला। सब लोग दु:खी हो उठे थे। सभी सामान एक-एक कर गाड़ी में लादे गये,फिर सभी अंग्रेज उसमें चढ़े। तीनों गाड़ी लौट चली अपने गंतव्य स्थान की ओर।
  
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  "कुछ भी कहो भैया,मनकू भैया ने तो लंबा हाथ मारा है"- हंसती हुई धन्नो अपने भाई से बोली |
   "हां; कितना चाहती है, बेचारी! काश, मुझे भी कोई ऐसे चाहती"!   -  कनखियों से शब्बो को देखता हुआ धन्नो के भाई ने कहा।
   "क्या बात हो रही है" -  हंसता हुआ मनकू माँझी ने चट्टान की तरफ से आते हुए पूछा।
  "जाओ भैया,मैं तुमसे बात नहीं करती"!  - ठुनकती हुई धन्नो ने कहा।
  "क्यों,ऐसी क्या बात हो गई"! -  आश्चर्यचकित हो मनकू ने पूछा |
   "इतनी सुंदर भाभी तुम्हारे पास खिंची हुई चली भी आई,तो भी तुम नहीं मिले उससे | छिपकर चोर जैसा बैठ गए"|
  "हां मैगनोलिया मिली भी थी तो ऐसे। तुम नहीं जानती बहना,वह जो युवक सबसे पहले वहां आया था,वही मेरा हत्यारा है ! वह मैगनोलिया से जबरदस्ती शादी करना चाहता है,अगर फिर मैं उसकी दृष्टि में आ जाता तो,मुझे फिर परेशानियां मोल लेना पड़ता | मुझे रास्ते से हटाने के लिए वह कुछ भी करता | अपने आप से दिल ही दिल में बोलता हुआ मनकू माँझी ऊपर से चुप ही रहा। वह जैसे कहीं खो गया था। वातावरण बोझिल हो चला था,सब लोग बस्ती की ओर चल पड़े।

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"तो तुम चले ही जाना चाहते हो"? जमुना बाड़ी के सरदार ने मनकू की ओर देखकर पूछा |
  "क्या करूं बाबा,मुझे जाना ही पड़ेगा | बहुत दिन यहां रहते हो गए, पता नहीं उधर क्या हो रहा होगा"? -  गंभीरता पूर्वक मनकू ने जवाब दिया |
   "ठीक है,जैसी तुम्हारी इच्छा" -  सरदार दु:खी हो उठा l
  राघोपुर का सरदार चुपचाप उन लोगों की बातें सुन रहा था। शब्बो ने मनकू माँझी की लाचारी अपने पिता से कह सुनाया था। फिर दोनों सरदारों में बातचीत हुई थी। राघोपुर का सरदार दु:खी हो गया था | उसकी मनकू को दामाद बनाने की इच्छा पूरी नहीं हो पाई थी l आंखों में आंसू लिए मनकू माँझी अपनी गंभीरता तोड़ता हुआ पुनः बोला -
   "मैं मजबूर हूं सरदार,इसीलिए आपकी बात नामंजूर करना पड़ रहा है,हो सके तो आप धन्नो के भाई से ही शब्बो की शादी रचा देंगे,यह उन दोनों के लिए अच्छा होगा | मैं जा रहा हूं,यह बात धन्नो को तो मालूम हो ही गई होगी।  अगर जीवित रहा तो फिर भविष्य में मुलाकात होगी"|
मनकू की आंखों से टप-टप पानी बरस रहा था | दोनों सरदार के चरण छू कर उसकी धूलि अपने मस्तक पर से लगाया, फिर धन्नो से मिला | वह भी रो रही थी | जंगल की सीमा तक धन्नोऔर उसके भाई ने मनकू माँझी का साथ दिया |
  मनकू माँझी ने अश्रु प्लावित नयनो से उन दोनों से विदा लिया। वह चला जा रहा था,जंगल के बीच बनी पगडंडी पर | कभी-कभी किसी आदमी के मिलने पर उससे नेतरहाट का रास्ता पूछ लेता था।


        क्रमशः




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